Stop Wasting Time On Reels : पुरे देश में सोशल मीडिया पर शार्ट वीडियो या रील्स देखने के इतनी बुरी लत लग गई है लोगो में की बहुत से लोग रील देखने में घंटो बर्बाद करते हैं। अभी हाल ही में एक इन्फुलांसर मार्केटिंग कंपनी कोफ्लूएंस ने एक रिसर्च किया जिसका रिजल्ट बेहद चौकाने वाले हैं। इस रिपोर्ट में कई तरह के चौकाने वाले खुलासे हुए जिसे जान कर आप हैरान हो जायेंगे।
Stop Wasting Time On Reels : रिपोर्ट में क्या कहा गया हैं ?
इस रिपोर्ट में बताया गया है की भारत में रोजाना औसतन 4 से 40 मिनट एक यूजर रील्स देखने में अपना समय व्यतीत करता हैं। जिसमे से एक यूजर औसतन अकेले इंस्टाग्राम पर 20 बार जाता हैं। इंस्टाग्राम, फेसबुक की पेरेंट कंपनी मेटा (Meta) का कहना है की, उनके एप्प पर आने वाला यूजर अपना 20 प्रतिशत से ज्यादा समय रील्स देखता हैं। कुछ यूजर तो सिर्फ रील्स देखने ही आते हैं।
हालात तो यहां तक पहुंच गया है की कुछ लोग बाथरूम में भी स्मार्टफोन ले जाते है रील्स देखने के लिए। और इसमें छोटे बड़े सभी शामिल हैं।
कोई विशेष जानकारी भी नहीं होती।
सब से बड़ी बात की जो लोग अपने दिन के कई घण्टे रील्स में बर्बाद कर देते हैं, उन सभी रील्स की हकीकत ये होता है की उन सभी रील्स में ना कोई सच्चई होती है और कोई जानकारी बस लोग बेमतलब के अपना समय बर्बाद किये जा रहे हैं। लेकिन लोगो में इसकी इतनी बुरी लत लग चुकी है की इंसान अपना भला-बुरा सोचने समझने की शक्ति पूरी तरह से खो चूका है, तभी अपना पूरा समय फालतू के रील्स पर कुर्बान कर देता हैं।
पढाई को कैसे प्रभावित कर रहा है रील्स
अभी हाल ही में नीट की परीक्षा हुआ जिसमे 25 लाख से भी ज्यादा बच्चों ने फॉर्म भरे थे, लेकिन उसमें से सफल कितने हुए एक लाख से भी कम बच्चे। आखिर ऐसा क्यों वजह है रील्स पर वक़्त की बर्बादी। हमने से बहुत ऐसे पढ़ने वाले बच्चों को देखा है जो अपने खाली समय में रील्स देखर बर्बाद कर देते हैं। ऐसे बच्चे सिर्फ दिखाने मात्र के लिए एग्जाम की तैयारी करते हैं। ऐसे बच्चे सिर्फ अपने माँ बाप के पैसो की बर्बादी कर रहे हैं।
कुल मिलाकर आज के तारीख में देखा जाए तो ज़्यदातर नौजवान अपना समय और ऊर्जा गलत जगह खर्च कर रहा हैं. शार्ट वीडियो या रील्स देखर। जब भी कोई इंस्टा या यूट्यूब ओपन करता है तो सब से पहले रील्स प्ले होना लगता है, फिर आदमी एक के बाद कई सारे रील्स देख जाता है और उसे समय का अंदाजा भी नहीं होता हैं। कोई बाबा बना हुआ हैं तो कोई ज्योतिष, डॉक्टर, कोई बिना किसी सही जानकारी के आधा अधूरा ज्ञान बाँट रहा हैं।
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परिवार में दरार पैदा कर रहा है रील्स।

पहले के समय भारत में सयुक्त परिवार हुआ करता था जिसमे परिवार के सभी सदस्य बच्चे बूढ़े एक साथ रहते थे, बच्चे अपने चाचा ताऊ के बच्चों के साथ आपस में खेलते थे और बड़े बूढ़े घर के बाकी के कामों में अपना हाथ बटाते थे इस तरह एक दूसरे के सहयोग से पूरा घर चलता था।
लेकिन वही आज के समय में बच्चे अपने माता पिता के साथ रहते तो है लेकिन उन्हें भी अब प्राइवेसी चाहिए, मतलब की उनको अपना एक अलग कमरा चाहिए जबकि उनके पास ऐसा कुछ करने को नहीं होता है की प्राइवेसी के जरुरत हो। जब बच्चों को अपना एक अलग कमर मिल जाता है तो फिर वे अपने हिसाब से रहते है, दरवाजा लॉक किये और फिर घंटो बिना हिले डुले फोन के स्क्रीन पर नजरे गड़ाए रील्स देखते हैं।
आज बच्चें हो या नौजवान लगभग सभी आज के समय में घर के कामों में बिल्कुल भी हाथ नहीं बटाना चाहते, जैसे ही समय मिलता है रील्स देखने में व्यस्त हो जाते हैं।
पहले के समय में लड़कियां माँ के साथ किचन में माँ की सहायता करती थी, और साथ में खाना पकाना भी सीखती थी. लड़के पापा या दादा के साथ उनके काम में हाथ बटाते थे, लेकिन आज के समय में वे रील्स देखर कर मोबाइल डाटा खर्च करते है, अब मोबाइल डाटा कम पड़ रहा है तो अलग से अनलिमटेड वाईफाई लगवा लेते हैं।
आप खुद सोचिये की आखिर वो बच्चा कब तक घर में बैठे-बैठे रील्स देखेगा, आखिर वो कब तक निठल्ला बना रहेगा, जब उसके सर पर जिम्मेदारियों का बोझ पड़ेगा तब वो क्या करेगा ?
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