Loan Recovery Process: लोन लेने वाले की मृत्यु होने पर क्या होता है? जानें बैंक के नियम और कानूनी प्रक्रिया।

News Bahadur
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Bank Loan Recovery Process. Image Credit Canva

Loan Recovery Process: लोन लेने वाले की मृत्यु होने पर क्या होता है? जानें बैंक के नियम और कानूनी प्रक्रिया। आज के समय में लोन लेना आम बात हो गई है। चाहे घर खरीदने के लिए होम लोन हो, कार के लिए ऑटो लोन, या व्यक्तिगत जरूरतों के लिए पर्सनल लोन, बैंक और वित्तीय संस्थान लोगों की मदद के लिए आगे आते हैं।

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लेकिन एक सवाल जो अक्सर लोगों के मन में उठता है, वह यह है कि अगर लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाए, तो बैंक उस लोन की रकम किससे और कैसे वसूल करता है? इस लेख में हम इस सवाल का जवाब विस्तार से देंगे और भारतीय कानूनी और वित्तीय प्रणाली के आधार पर नियमों को समझाएंगे।

Loan Recovery Process: लोन की वसूली का क्रम और जिम्मेदारी कैसे तय की जाती है ?

जब लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाती है, तो बैंक लोन की रकम वसूल करने के लिए एक निर्धारित क्रम में काम करता है। सबसे पहले, यदि लोन में कोई को-बॉरोअर (सह-उधारकर्ता) या गारंटर शामिल है, तो बैंक उनसे संपर्क करता है। को-बॉरोअर और गारंटर दोनों ही लोन की पूरी रकम चुकाने के लिए कानूनी रूप से जिम्मेदार होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई पति-पत्नी ने संयुक्त रूप से होम लोन लिया है और पति की मृत्यु हो जाती है, तो पत्नी को शेष रकम चुकानी होगी।

यदि कोई को-बॉरोअर या गारंटर नहीं है, तो बैंक मृतक के एस्टेट की ओर रुख करता है। एस्टेट में मृतक की सभी संपत्तियां जैसे बैंक खाते, मकान, जमीन, या अन्य निवेश शामिल होते हैं। इस एस्टेट का प्रबंधन या तो वसीयत में नामित एग्जीक्यूटर करता है या फिर कानूनी वारिस, यदि कोई वसीयत नहीं है। भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 के तहत, मृतक की संपत्तियों से पहले उनके कर्ज चुकाए जाते हैं, और फिर बची हुई संपत्ति वारिसों में बंटती है।

लोन के प्रकार और वसूली की प्रक्रिया।

loan recovery process in india
loan recovery process in india. Image Credit Canva.

लोन की वसूली का तरीका इस बात पर निर्भर करता है कि लोन सिक्योर्ड है या अनसिक्योर्ड। सिक्योर्ड लोन, जैसे होम लोन या कार लोन, में बैंक के पास संपत्ति के रूप में गारंटी होती है। यदि लोन लेने वाले की मृत्यु हो जाती है और कोई को-बॉरोअर नहीं है, तो बैंक उस संपत्ति को जब्त कर सकता है और उसे बेचकर अपनी रकम वसूल सकता है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी ने होम लोन लिया और उसकी मृत्यु हो गई, तो बैंक घर को बेचकर बकाया राशि वसूल कर सकता है। यदि बिक्री से अतिरिक्त राशि बचती है, तो वह वारिसों को दी जाती है।

दूसरी ओर, अनसिक्योर्ड लोन जैसे पर्सनल लोन या क्रेडिट कार्ड में कोई संपत्ति गारंटी के रूप में नहीं होती। ऐसे में बैंक केवल मृतक के एस्टेट से ही पैसा वसूल कर सकता है। अगर एस्टेट में पर्याप्त संपत्ति नहीं है, तो बैंक शेष राशि को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के रूप में राइट ऑफ कर सकता है। इसका मतलब है कि कानूनी वारिसों से व्यक्तिगत रूप से कोई वसूली नहीं की जा सकती। यह नियम परिवार वालों के लिए बड़ी राहत भरी हो सकता है।

कानूनी वारिस की भूमिका और सीमाएं क्या हैं ?

कई लोगों को यह गलतफहमी होती है कि लोन लेने वाले की मृत्यु के बाद उनके परिवार को व्यक्तिगत रूप से कर्ज चुकाना पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है। कानूनी वारिस केवल मृतक के एस्टेट से कर्ज चुकाने के लिए जिम्मेदार होते हैं, न कि अपनी जेब से। यदि एस्टेट में कोई संपत्ति नहीं है, तो बैंक आगे वसूली नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, अगर मृतक के पास सिर्फ एक छोटा बैंक खाता था और उसमें पर्याप्त राशि नहीं है, तो वारिसों पर कोई अतिरिक्त दबाव नहीं डाला जा सकता।

लोने लेते वक़्त इंश्योरेंस का महत्व जाने।

what is loan recovery process
what is loan recovery process? Image Credit Canva.

एक अप्रत्याशित लेकिन महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अगर लोन लेते समय उधारकर्ता ने लाइफ इंश्योरेंस लिया था और उसे लोन के लिए असाइन किया था, तो इंश्योरेंस कंपनी लोन की बकाया राशि चुका सकती है। यह खासकर सिक्योर्ड लोन जैसे होम लोन में आम है, जहां लेंडर अक्सर क्रेडिट लाइफ इंश्योरेंस की सलाह देते हैं। इससे परिवार पर आर्थिक बोझ कम होता है और संपत्ति भी सुरक्षित रहती है।

क्या कहते है एक्सपर्ट ?

विशेषज्ञों का कहना है कि लोन लेने वाले की मृत्यु के बाद परिवार को तुरंत बैंक को सूचित करना चाहिए। इसके लिए मृत्यु प्रमाण पत्र, उत्तराधिकार प्रमाण पत्र, और अन्य जरूरी दस्तावेज जमा करने पड़ते हैं। यह प्रक्रिया को आसान बनाता है और कानूनी जटिलताओं से बचाता है। साथ ही, परिवार को यह जांचना चाहिए कि क्या कोई इंश्योरेंस पॉलिसी लोन से जुड़ी थी, ताकि उसका लाभ उठाया जा सके।

निष्कर्ष

लोन लेने वाले की मृत्यु के बाद बैंक की प्राथमिकता को-बॉरोअर या गारंटर से वसूली होती है। अगर ये नहीं हैं, तो सिक्योर्ड लोन में संपत्ति बेची जा सकती है और अनसिक्योर्ड लोन में एस्टेट से राशि ली जाती है। कानूनी वारिस केवल एस्टेट की संपत्तियों तक सीमित जिम्मेदार होते हैं। यह समझना जरूरी है कि सही जानकारी और समय पर कदम उठाने से परिवार को अनावश्यक परेशानी से बचाया जा सकता है। लोन लेते समय इंश्योरेंस और को-बॉरोअर जैसे विकल्पों पर विचार करना भी भविष्य में काफी मददगार साबित हो सकता है।

स्रोत: भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925, और विभिन्न वित्तीय संस्थानों के दिशानिर्देश पर आधारित हैं।

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