Chaitra Navratri 2025 Puja Vidhi: पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा से पाएं विशेष कृपा, जानें सही विधि और शुभ मुहूर्त।

Pawan
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Chaitra Navratri 2025.

Chaitra Navratri 2025 Puja Vidhi: चैत्र नवरात्रि, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार, जो की इस साल 30 मार्च, रविवार से शुरू होने जा रहा है। यह पर्व वसंत ऋतु में मनाया जाता है और माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की विशेष पूजा पाठ के लिए जाना जाता है। नवरात्रि का पहला दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है, जो शक्ति, शांति और समृद्धि की प्रतीक मानी जाती हैं।

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इस लेख में हम आपको बताएंगे कि चैत्र नवरात्रि 2025 के पहले दिन किस विधि से पूजा करें, जिससे माता की विशेष कृपा प्राप्त हो, साथ ही शुभ मुहूर्त और इस दिन के महत्व के बारे में भी पूरी जानकारी देंगे।

Chaitra Navratri 2025 Puja Vidhi: तिथि और महत्व।

चैत्र नवरात्रि 2025 की शुरुआत 30 मार्च से होगी और यह 7 अप्रैल तक चलेगा। इस बार नवरात्रि 8 दिनों तक रहेगा, जो पंचांग के अनुसार तिथियों के संयोग के कारण है। पहला दिन, जिसे प्रतिपदा तिथि कहा जाता है, 30 मार्च को होगा। इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है, जिन्हें हिमालय की पुत्री के रूप में जाना जाता है। कई क्षेत्रों में यह हिंदू नववर्ष की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता हैं, जैसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा और दक्षिण भारत में उगादी।

पूजा की तैयारी कैसे करे ?

चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की तैयारी सुबह जल्दी शुरू होनी चाहिए। सबसे पहले घर और पूजा स्थल (मंदिर )की सफाई करें, स्नान के बाद लाल या पीले रंग के साफ-सुथरे कपड़े पहनें। ये रंग माता दुर्गा को प्रिय हैं और ये रंग सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। पूजा के लिए एक लकड़ी की चौकी पर माता शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके साथ ही, एक दीपक और अगरबत्ती जलाएं ताकि वातावरण में पवित्रता बनी रहे।

कलश स्थापना: माता की उपस्थिति का प्रतीक

नवरात्रि की शुरुआत में कलश स्थापना एक अनिवार्य रिवाज है। इसके लिए एक तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरें और उसमें सुपारी, अक्षत (चावल), और एक सिक्का डालें। कलश के ऊपर नारियल रखें और इसे लाल या पीले कपड़े से ढक दें। इसे पूजा स्थल पर स्थापित करें। पंचांग के अनुसार, 30 मार्च को कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 06:13 से 10:22 बजे तक है। इसके अलावा, अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:01 से 12:50 बजे तक रहेगा। यह समय माता की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।

पूजा विधि क्या है ?

  1. माता की स्थापना और दीप प्रज्वलन: पूजा स्थल पर माता शैलपुत्री की मूर्ति या तस्वीर रखें। एक घी का दीपक जलाएं और अगरबत्ती जलाये।
  2. अर्पण: माता को लाल फूल, फल, मिठाई और पान के पत्ते अर्पित करें। लाल फूल माता को विशेष रूप से पसंद हैं।
  3. मंत्र जाप: “ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे” मंत्र का जाप करें। यदि संभव हो तो 108 बार जाप करें। इसके अलावा, दुर्गा सप्तशती का पाठ भी शुभ होता है।
  4. व्रत और सात्विक आहार: कई भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और फल, दूध या अन्य सात्विक भोजन लेते हैं।
  5. आरती और प्रसाद: पूजा के अंत में माता की आरती करें और प्रसाद, जैसे हलवा या फल, परिवार और जरूरतमंदों में बांटें। इससे माता की विशेष कृपा होगी।

माता की विशेष कृपा पाने के टिप्स

माता शैलपुत्री की विशेष कृपा पाने के लिए मन में भक्ति और शुद्धता रखना जरूरी है। सुबह जल्दी उठकर ध्यान करें और माता के नौ स्वरूपों के बारे में पढ़ें। इस दिन नारंगी रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। इसके अलावा, दान-पुण्य और जरूरतमंदों की मदद करने से माता प्रसन्न होती हैं। ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से की गई पूजा से माता जीवन में शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।

क्षेत्रीय विविधताएं और सांस्कृतिक महत्व

चैत्र नवरात्रि का उत्सव पूरे भारत में अलग-अलग रंगों में देखने को मिलता है। उत्तर भारत में यह त्योहार राम नवमी के साथ समाप्त होता है, जो भगवान राम के जन्म का उत्सव है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा के साथ जोड़ा जाता है, जबकि दक्षिण भारत में यह उगादी के साथ मनाया जाता है। यही विविधता इस त्योहार की व्यापकता और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है।

आध्यात्मिक और सामाजिक प्रभाव

चैत्र नवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह सामाजिक एकता और आध्यात्मिक जागृति का भी प्रतीक है। इस मौके पर माता के भक्त एक-दूसरे के घर जाते हैं, प्रसाद बांटते हैं और सामूहिक पूजा में हिस्सा लेते हैं। यह त्योहार अच्छाई पर बुराई की जीत का संदेश देता है और माता दुर्गा के रूप में शक्ति और साहस की प्रेरणा देता है।

नोट: पूजा के समय स्थानीय पंडित से भी सलाह लें, क्योंकि क्षेत्रीय पंचांग में कुछ अंतर हो सकता है।

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