सनातन (हिन्दू) धर्म में हर त्योहारों का अपना एक अलग ही महत्व होता है दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा मनाने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है।

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गोवर्धन पूजा का त्यौहार प्रति वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है इस त्यौहार को लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते है।

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गोवर्धन पूजा के दिन लोग एकसाथ इकठा होकर अपने घर के बाहर गाय के गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाते है और उसकी पूजा करते है।

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गोवर्धन पूजा इस त्यौहार के दिन गायों को भी पूजने का विशेष महत्व है।

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इस दिन भगवान कृष्ण जी ने वृंदावन के लोगों को वर्षा के देवता इंद्र जी के प्रकोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठाए थे।

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पौराणिक कथाओं में ऐसी मान्यता है की कृष्ण जी ने वृंदावन के लोगों से कहा की वर्षा के देवता इंद्र जी पूजने की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करे।

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जब इंद्रदेव जी को इसके बारे में पता चला तो उन्होने वृंदावन के ऊपर मूसलाधार बारिश करना शुरू कर दिये।

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मूसलाधार बारिश ने जल्द ही भयावह रूप ले लिया इस बारिश से वृंदावन के लोगों और जानवरों को बचाने के लिए कृष्ण जी ने अपनी छोटी ऊँगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया।

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लगातार 7 दिनों तक बारिश से बचने के लिए वृंदावन के लोग गोवर्धन पर्वत के छाया में रहे तब ब्रह्माजी ने इंद्रदेव को बताया कि पृथ्वी पर भगवान विष्णु ने ही कृष्ण जी के रूप में जन्म लिया है।

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उसके बाद इंद्र जी ने कृष्ण जी से माफी मांगी फिर श्रीकृष्ण जी ने 7वें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा तब से लेकर अब तक गोवर्धन पूजा का त्यौहार अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।

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