गोवेर्धन पूजा का त्यौहार पांच दिन दीपोत्सव के चौथे दिन यानि दिवाली के दूसरे दिन कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।

Image Source Pinterest

इस त्यौहार को लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते है यह त्यौहार ग्रामीण क्षेत्रों के साथ शहरो में पूरी श्रद्धापूर्वक और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

Image Source Pinterest

गोवेर्धन पूजा इस त्यौहार में मानव का सीधा सम्बन्ध प्रकृति के साथ दिखाई देता है।

Image Source Pinterest

क्योंकि इस त्यौहार के दिन लोग प्रकृति के साथ अन्न की भी पूजा करते है और अपने पालतू जानवरो जैसे कि गाय व बैल को स्नान कराकर उन्हें रंग लगाते है।

Image Source Pinterest

उसके बाद उनके गले में नई रस्सी डालते है और गाय व बैल को गुड़, चावल मिलाकर खिलाते है और फिर उनकी पूजा करते है।

Image Source Pinterest

इस  त्यौहार के दिन भगवान श्री कृष्ण जी और गोवेर्धन पर्वत को छप्पन तरह के पकवान का भोग लगाया जाता है।

Image Source Pinterest

हिन्दू धर्मग्रंथ के अनुसार जब श्री कृष्ण जी ने मईया यशोदा से प्रश्न पूछा कि आपलोग किसकी पूजा की तैयारी में जुटे हैं।

Image Source Pinterest

यशोदा मईया श्री कृष्ण जी कि बाते सुनकर बोली हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं इसपर कृष्ण जी बोले हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय व बैल वहीं चरती हैं इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है।

Image Source Pinterest

श्री कृष्ण जी बाते सुनकर सभी लोगों ने इन्द्र जी के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की इन्द्र जी ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार बारिश शुरू कर दी तब श्री कृष्ण जी ने लोगों को बचाने के लिए अपनी छोटी ऊँगली पर पूरा गोर्वधन पर्वत उठा लिया।

Image Source Pinterest

देवराज इन्द्र श्रीकृष्ण की यह लीला देखकर उन्हें पहचान गए और श्री कृष्ण जी से क्षमा मांगी इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने कृष्ण जी पूजा कर उन्हें भोग लगाया इसके बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी।

Image Source Pinterest

क्या आप जानते है गोवर्धन पूजा के इतिहास और महत्व के बारे में

Image Source Pinterest