Hydrogen Train India: भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन ने पटरियों पर आज दौड़ेगी, हरित भविष्य की ओर एक कदम बढ़ाते हुए भारतीय रेलवे ने आज एक ऐतिहासिक उपलब्धि अपने नाम दर्ज कर ली है। देश की पहली हाइड्रोजन ट्रेन ने हरियाणा के जींद-सोनीपत रूट पर अपने ट्रायल रन की शुरुआत करने जा रही हैं, जो न केवल तकनीकी क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
आपको बता दे की यह ट्रेन हाइड्रोजन ईंधन सेल तकनीक पर आधारित है, जो हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के संयोजन से बिजली उत्पन्न करती है। इसका एकमात्र उप-उत्पाद पानी और भाप है, जिसके चलते यह पूरी तरह से प्रदूषण-मुक्त है। चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) में निर्मित और रिसर्च डिज़ाइन एंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइज़ेशन (RDSO) द्वारा डिज़ाइन की गई यह ट्रेन भारत के स्वदेशी इंजीनियरिंग कौशल का शानदार नमूना है।
Hydrogen Train India On Trial : लेटेस्ट तकनिकी।
यह हाइड्रोजन ट्रेन 1,200 हॉर्स पावर (HP) की प्रभावशाली शक्ति के साथ दुनिया की सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन ट्रेनों में शुमार है। तुलना करें तो जर्मनी और फ्रांस जैसे देशों में चल रही हाइड्रोजन ट्रेनों की शक्ति आमतौर पर 500-600 HP के बीच होती है। इसके अलावा, यह ट्रेन 110 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने में सक्षम हैं।
जो इसे मध्यम दूरी की यात्रा के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है। एक बार ईंधन भरने पर यह ट्रेन 1,000 किलोमीटर तक की दूरी तय करने की क्षमता रखती है, हालांकि इसका पहला ट्रायल 89 किलोमीटर के जींद-सोनीपत रूट पर शुरू हुआ है। ट्रेन में दो 2.4 मेगावाट के पावर प्लांट लगाए गए हैं, जो इसे 8-10 कोच खींचने की ताकत देते हैं।
Hydrogen Train Design: डिज़ाइनऔर इसकी क्षमता।
यह ट्रेन अपनी डिज़ाइन में भी भी काफी अच्छी है। इसमें कुल 10 कोच हैं, जिनमें 8 पैसेंजर कोच और 2 हाइड्रोजन सिलेंडर कोच शामिल हैं। यह इसे 2,638 यात्रियों को एक साथ ले जाने की क्षमता प्रदान करता है। यह विशेषता इसे दुनिया की पहली ऐसी हाइड्रोजन ट्रेन बनाती है, जिसमें इतने कोच शामिल हैं। अन्य देशों में संचालित हाइड्रोजन ट्रेनें आमतौर पर दो से तीन बोगियों तक सीमित होती हैं। इसके अलावा, यह ट्रेन डीजल इंजनों की तुलना में 60% कम शोर उत्पन्न करती है, जिससे यात्रियों को शांत और आरामदायक यात्रा का अनुभव मिलेगा।
पर्यावरणीय प्रभाव और ऊर्जा दक्षता
हाइड्रोजन ट्रेन का सबसे बड़ा लाभ इसका पर्यावरण के अनुकूल होना है। पारंपरिक डीजल ट्रेनें हर साल लाखों टन कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं, लेकिन यह ट्रेन शून्य कार्बन उत्सर्जन के साथ काम करती है। इसके लिए इस्तेमाल होने वाला हाइड्रोजन डीजल इंजन से अलग बनती हैं. यह 1 किलोग्राम हाइड्रोजन में 4.5 लीटर डीजल के बराबर माइलेज देता है। भारतीय रेलवे ने इसे green energy का हिस्सा बताते हुए कहा है कि यह तकनीक देश के 2030 तक “नेट ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन” के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
स्वदेशी तकनीक पर आधारित।
इस ट्रेन का डिज़ाइन और निर्माण पूरी तरह से भारत में हुआ है, जो देश की तकनीकी आत्मनिर्भरता को रेखांकित करता है। कपूरथला की रेल कोच फैक्ट्री और चेन्नई की ICF ने मिलकर इस प्रोजेक्ट को साकार किया है। यह न केवल भारतीय इंजीनियरों की प्रतिभा का प्रमाण है, बल्कि “मेक इन इंडिया” पहल को भी मजबूती देता है। सरकार और रेलवे का मानना है कि इस तकनीक के विकास से भविष्य में हाइड्रोजन ट्रेनों का निर्यात भी संभव हो सकेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को नई ताकत मिलेगी।
संचालन की योजना और भविष्य।
फिलहाल इस ट्रेन का ट्रायल हरियाणा के जींद-सोनीपत रूट पर शुरू हुआ है, लेकिन रेलवे की योजना इसे देश के हेरिटेज और पहाड़ी रूट्स पर नियमित रूप से चलाने की है। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, कालका-शिमला रेलवे और नीलगिरी माउंटेन रेलवे जैसे मार्गों पर इस ट्रेन को प्राथमिकता दी जाएगी, ताकि इन संवेदनशील पर्यावरण वाले क्षेत्रों को प्रदूषण से बचाया जा सके। ट्रायल पूरा होने के बाद इसे नियमित संचालन में लाया जाएगा। रेल मंत्रालय ने अगले तीन वर्षों में ऐसी 30 से 50 ट्रेनों को शुरू करने का लक्ष्य रखा है, जो भारतीय रेलवे के बेड़े को और अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाएगा।
वैश्विक संदर्भ में भारत की स्थिति
हाइड्रोजन ट्रेन तकनीक में भारत अब उन चुनिंदा देशों—जर्मनी, चीन, फ्रांस और स्वीडन—की सूची में शामिल हो गया है, जो इस टेक्नलॉजी को अपना चुके हैं। जर्मनी में 2018 में शुरू हुई पहली हाइड्रोजन ट्रेन के बाद से यह तकनीक धीरे-धीरे वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हो रही है। लेकिन भारत ने अपनी ट्रेन को अधिक शक्तिशाली और बड़ी क्षमता के साथ पेश कर एक नया मानक स्थापित किया है। यह कदम न केवल रेलवे के आधुनिकीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भी भारत के गंभीरता को दर्शाता हैं।
इसे भी पढ़े-